मान लो गर हार, तो फिर हार है
ठान लो गर जीत, तो फिर जीत है
कोशिश नहीं है पूरी, तो फिर हार है
बाँधी जो कमर कस के, तो फिर जीत है
टूटी कभी जो हिम्मत, तो फिर हार है
लड़े जो आखिर तक, तो फिर जीत है
थक कर जो बैठ गए, तो फिर हार है
चल पड़ो पूरे जोश से, तो फिर जीत है
रहे जो डर कर ही सदा, तो फिर हार है
एक बार जो लड़ गए, तो फिर जीत है
सुनते रहे जो सबकी, तो फिर हार है
दिल की जो बस सुन ली, तो फिर जीत है
मंज़िल है लापता, तो फिर हार है
साफ़ है गर लक्ष्य, तो फिर जीत है
निकले न कभी घर से, तो फिर हार है
उठा जो एक कदम तो, फिर जीत है
मान लो गर हार, तो फिर हार है
ठान लो गर जीत, तो फिर जीत है
ठान लो गर जीत, तो फिर जीत है
कोशिश नहीं है पूरी, तो फिर हार है
बाँधी जो कमर कस के, तो फिर जीत है
टूटी कभी जो हिम्मत, तो फिर हार है
लड़े जो आखिर तक, तो फिर जीत है
थक कर जो बैठ गए, तो फिर हार है
चल पड़ो पूरे जोश से, तो फिर जीत है
रहे जो डर कर ही सदा, तो फिर हार है
एक बार जो लड़ गए, तो फिर जीत है
सुनते रहे जो सबकी, तो फिर हार है
दिल की जो बस सुन ली, तो फिर जीत है
मंज़िल है लापता, तो फिर हार है
साफ़ है गर लक्ष्य, तो फिर जीत है
निकले न कभी घर से, तो फिर हार है
उठा जो एक कदम तो, फिर जीत है
मान लो गर हार, तो फिर हार है
ठान लो गर जीत, तो फिर जीत है